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आइये पुस्तकालय विज्ञान को आसान बनाये।

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पुस्तकालय सन्दर्भ सेवा (Library Reference Service)

    

पुस्तकालय सन्दर्भ सेवा

     आधुनिक युग में शिक्षा व्यक्ति के लिए आवश्यक तत्त्व बन गई है। शिक्षा के दायित्वों को पूर्ण करने के लिए मनुष्य को निरन्तर शोध तथा अध्ययन में लगे रहना अनिवार्य हो गया है। संस्कृत शब्दकोश के अनुसार, “एक साथ बाँधने वाला, संयोजित करने वाला, मिलाने वाला, बुनने वाला इत्यादि अर्थों में मूल तत्त्व या दो वस्तुओं के मध्य सम्पर्क स्थापित करने के लिए प्रयुक्त सेवा या कार्य को अभिव्यक्त करने के लिए सन्दर्भ सेवा पद का प्रयोग किया जाता है। अर्थात् पुस्तकालय सन्दर्भ सेवा से तात्पर्य उस व्यक्तिगत सेवा से है, जिसके द्वारा पाठकों को पुस्तकालय के उपकरण, वर्गीकरण, सूचीकरण आदि को समझने, उनका उपयोग करने, अध्ययन सामग्री की जानकारी प्राप्त करने तथा उसको खोजने में सहायता प्रदान की जाती है। एक शिक्षक, एक मार्गदर्शक तथा एक दार्शनिक की संज्ञा ग्रन्थावली को दी जाती है।" 


सन्दर्भ सेवा की अवधारणा 


व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि वह साहित्य सिद्धान्त प्रयोग तथा मान्यताओं से सदा परिचित रहे। इसलिए उपरोक्त तथ्यों से परिचित रहने के लिए एक संस्था की आवश्यकता होती है साथ ही सामहिक शोध के कारण आजकल नवीन तथ्यों की खोज तेजी से हो रही है। पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकामा में असंख्य हैं, इन सबका व्यावहारिक विद्यालय में संकलन सम्भव नहीं है, इसलिए पस्तकालय नाही एक अलग संस्था की आवश्यकता पड़ी। यह शब्द साहित्य को संगठित करता है तथा पारा आवश्यकतानुसार उन्हें उपलब्ध कराता है। अर्थात् यह अप्रत्यक्ष रूप से जनता को जीवनपर्यन्त सूचना तथा ज्ञान प्रदान करता है। 


सामान्यत: पुस्तकालयों द्वारा पाँच प्रकार के गुणसूचक साहित्य प्रस्तुत किए जाने के निम्नलिखित हैं 


1. सन्दर्भ ग्रन्थ यह स्मृति को सदा अद्यतन बनाए रखने का सहायक साधन है।

2. साहित्य ग्रन्थ कथा, उपन्यास, जीवनी, शोधग्रन्थ, संस्मरण तथा पत्र साहित्य ये गुणों से अलंकृत मनोरजक, उत्साहवद्धक तथा प्रेरणादायक, विचारोत्तेजक और कल्पना साहित्य है।

3. साधारण पुस्तक और पत्रिकाएँ सामान्य पाठकों की ग्रहण शक्ति को ध्यान में उनके लिए निर्मित अध्ययन सामग्री हैं।

4. मानक ग्रन्थ और शोध-पत्रिकाएँ ये मानवीय प्रतिभा को सक्रिय बनाती हैं। 

5. उपजीव्य तथा अक्षर साहित्य सार्वजनिक दृष्टि से तथा विचारों से परिपूर्ण सर्जनात्मक साहित्य।

    पाठकों को अपने विषय से परिचित होने के लिए हर समय की जानेवाली व्यक्तिगत सेवा उसके प्रश्न या समस्याओं को अच्छी तरह समझकर समाधान हेतु आवश्यक साहित्य उपलब्ध कराना सूचनाएँ एकत्रित कर प्रस्तुत करना उनकी बौद्धिक कठिनाइयों को समझ कर अपने आवश्यक व्यवहार से अपाठकों को भी पाठक बनाना, उसमें अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न करना और उनके विषयों या रुचि से सम्बन्धित सन्दर्भो की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करना आदि बौद्धिक तथा अन्य वैयक्तिक सहायता को सन्दर्भ सेवा कहा जाता है। 


सन्दर्भ सेवा की उपयोगिता 

पुस्तकालय सेवा पुस्तकों, पाठकों तथा स्टाफ की तिकड़ी है। इन तीनों के मध्य समन्वय स्थापित करने के लिए सन्दर्भ सेवा की आवश्यकता होती है। पुस्तकों का संग्रहण तथा संगठन करना, उनका संरक्षण तथा पाठकों द्वारा माँग किए जाने पर उनका संरक्षण तथा पाठकों को प्रदान करना, आस-पास के लोगों को पुस्तकालय की ओर आकर्षित करना तथा उन्हें नियमित रूप से पाठक बनाना सन्दर्भ सेवा का मुख्य लक्ष्य है।


सन्दर्भ सेवा की उपयोगिताओं को निम्नांकित प्रकार से वर्णित किया जा सकता है 


• संसार में साहित्य का प्रकाशन लगातार अलग-अलग भाषाओं में होता है। इसलिए किसी भी विद्वान् के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह सभी भाषाओं का ज्ञान रख सके। अत: अन्य भाषाओं के साहित्य का अनुवाद करके पाठकों को उपलब्ध कराना भी एक प्रकार की सन्दर्भ सेवा है। सूचना का संगठन तथा प्रसारण व्यवस्था सन्दर्भ सेवा कहलाती है। 


• आधुनिक युग में पुस्तकालय सन्दर्भ सेवा पाठकों के लिए बहुखण्डीय इनसाइक्लोपीडिया की तरह कार्य करने लगी है। इसमें इण्टरनेट, सी रोम इत्यादि के अन्तर्गत भी जानकारियाँ उपलब्ध कराई जाती हैं। 


• पाठक पुस्तकालयों में प्रयुक्त वर्गीकरण एवं सूचीकरण पद्धतियों से परिचित नहीं होते। अत: व्यक्तिगत सहायता द्वारा पाठकों को इन सबसे परिचित कराया जाता है। तत्पश्चात् पाठक धीरे-धीरे अपनी पाठ्य सामग्री खोजने लगते हैं। व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए सन्दर्भ सेवा आवश्यक है। 

•सामान्यत: वैज्ञानिक अनुसन्धानों का कल-कारखानों में उपयोग बढ़ता जा रहा है। प्रत्येक व्यवसाय उन्नत करने के उद्देश्य से तथा जनसाधारण की आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए तथा औद्योगिक आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाना आवश्यक है। ऐसे संस्थानों में सन्दर्भ सेवा के संगठनों से कार्यकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों को पर्याप्त लाभ हुआ है। साथ ही जनसाधारण के लिए भी यह एक आवश्यक उपबन्ध है। अर्थात् सन्दर्भ सेवा की आवश्यकता सिर्फ विशिष्ट पुस्तकालयों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रसार सार्वजनिक पुस्तकालयों तक भी हो गया है। 


विविध पुस्तकालयों में सन्दर्भ सेवा की आवश्यकता 


यद्यपि सन्दर्भ सेवा पद्धति पुस्तकालय में समान ही होती है, किन्तु ग्रन्थालय के आकार-प्रकार स्थिति पर निर्भर उपकरण आदि की भिन्नता उसकी आवश्यकताओं में भी भिन्नता उत्पन्न कर देती है। 


विश्वविद्यालय ग्रन्थालय 


फोटोस्टेट प्रतियों, पुस्तिकाओं, पुस्तकों, लेखों आदि के द्वारा शिक्षा का प्रसारण करना विश्वविद्यालय का प्रमुख कार्य है। ये ग्रन्थालय शिक्षा के जीवन्त केन्द्र हैं तथा पुस्तकों तथा अन्य अध्ययन सामग्रियों के भण्डार हैं। इन ग्रन्थालयों के उपयोगकर्ता मुख्य रूप से छात्र, अध्यापकगण तथा शोधकर्ता होते हैं। भूतपूर्व छात्र तथा अध्यापक और स्थानीय व्यक्तियों द्वारा भी कभी-कभी इनका उपयोग किया जाता है। ग्रन्थालय द्वारा इन सभी प्रकार के उपयोगकर्ताओं की अध्ययन तथा अध्यापन सम्बन्धी विविध समस्याओं का समाधान किया जाता है। यह कार्य सन्दर्भ विभाग द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है। 


निम्नांकित कारकों से एक ग्रन्थालय विश्वविद्यालय में सन्दर्भ सेवा की आवश्यकता होती है। 


• पाठकों को अनुवाद सेवा प्रदान करने के लिए। 


• शोधकर्ताओं को वाङ्मय सूची के निर्माण, अनुक्रमणिका आदि में 


•मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए। 


• पाठकों की आवश्यकतानुसार लेखों आदि की फोटोस्टेट प्रतियाँ प्रदान करने के लिए। 


• स्वयं के ग्रन्थालय के अप्राप्त प्रलेखों की अन्त:ग्रन्थालयी आदान-प्रदान पद्धति द्वारा अन्य ग्रन्थालयों से व्यवस्थित करने के लिए। 


• पाठकों को उनके विषय से सम्बन्धित नवीन एवं अद्यतन सूचनाएँ प्रदान करने के लिए। 


• सामान्य एवं विशिष्ट सूचनाएँ प्रदान करने के लिए। 

• नवागन्तुक पाठकों को ग्रन्थालय के उपयोग में सामर्थ्यवान बनाने के लिए तथा ग्रन्थालय परिचय प्रदान करने के लिए। 


• प्रलेखों की खोज अथवा ग्रन्थालय सूची के उपयोग व सन्दर्भ ग्रन्थों के उपयोग में सहायता सन्दर्भ कर्मचारियों द्वारा प्रदान की जाती है। 


सार्वजनिक पुस्तकालय 


सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना सर्वजन हिताय के आधार पर की जाती है, जि करने वाले व्यक्ति की जाति, धर्म व वर्ग के भेद को कोई महत्त्व नहीं दिय का जाति, धर्म व वर्ग के भेद को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। समाज का प्रत्यक व्यक्ति इन ग्रन्थालयों का सदस्य बन सकता है। ग्रन्थालय के द्वार सभी व्यक्तियों के लिए जिनकी आवश्यकताएँ, समस्याएँ आदि भिन्न-भिन्न होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की अध्ययन-आवश्यकताओं की पूर्ति करना ग्रन्थालय का कर्तव्य है। 

    सार्वजनिक ग्रन्थालय में निम्नलिखित कारणों से सन्दर्भ सेवा की आवश्यकता होती है . 


• आवश्यकतानुसार ग्रन्थालय आदान-प्रदान की व्यवस्था करना।

• नागरिकों के स्वरूप, मनोरंजन. उनके अवकाश एवं रिक्त स्थान तथा समय के सदउपयोग एवं उचित सुझाव प्रदान करने के लिए। विविधकार्यों में व्यस्त व्यक्तियों की आवश्यकता एवं माँग के अनुरूप वाङ्मय सूचा, अनुवाद कार्यों का सम्पादन करने के लिए। पाठक यदि छात्र हो तथा पस्तकालय में पहली बार आया हो उसे अध्ययन सामग्री से परिचित कराने के लिए, साथ ही उनके उपयोग में प्रशिक्षित करने के लिए ताकि सम्बन्धित व्यक्ति की समस्याआ का समाधान हो सके। पुस्तकालयों द्वारा प्रयुक्त विविध प्रविधियों; जैसे-वर्गीकरण, सचीकरण, निधानी व्यवस्थापन मुक्त द्वार प्रणालियों से परिचित कराने के लिए जिससे पाठक ग्रन्थालय का उपयोग स्वयं सफलतापूर्वक कर सके। 


• पुस्तकालय के नियमों, पुस्तकालयों की विविध गतिविधियों एवं कार्यविधियों से परिचित कराने के लिए जिससे वे सफलतापूर्वक ग्रन्थालय का उपयोग कर सकें। 


• सार्वजनिक पुस्तकालय 'लोक विश्वविद्यालय' है। इनके द्वारा जन-साधारण में बिना किसी भेदभाव के ज्ञान का प्रसार एवं वितरण कर उनके ज्ञान की पिपासा शान्त की जाती है। 


• प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत योग्यता और राष्ट्र के विकास हेतु महापुरुषों के सद् विचारों से शिक्षा, सूचना, ज्ञान और प्रेरणा प्रदान करने के अवसर समान रूप से उपलब्ध होने चाहिए। ग्रन्थालय में यह सुविधा सरलता एवं सुगमता से प्रदान करने का कार्य सन्दर्भ सेवा विभाग द्वारा सम्पन्न किया जाता है। 

 


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