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पुस्तकालय की समाज में भूमिका (Role in Society)

 पुस्तकालय की समाज में भूमिका (Role in Society)

पुस्तकालय की समाज में भूमिका
 

- आज का लोकतान्त्रिक युग समतामूलक समाज की वकालत करता है,, जिसमें प्रत्येक मानव को अपने विकास एवं शिक्षा के लिए बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्रदान होने चाहिए,, तथा विभिन्न तरह के सूचनाओं का उपयोग मानवीय विकास के लिए बिना किसी भेदभाव के होने चाहिए,, पुस्तकालयों द्वारा पुस्तकों एवं सूचनाओं का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रसारण बिना किसी भेदभाव के समस्त उपयोक्ताओं को किया जाता है एवं अपने सामाजिक और शैक्षणिक दायित्वों का निर्वाह किया जाता है,, पुस्तकालयों की समाज में भूमिकाओं को हम इस प्रकार देख सकते है,,

 (i) शिक्षाः पुस्तकालय को सभी प्रकार की शिक्षा

 - औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है,, यह शिक्षा क्षेत्र में आधार स्तंभ की तरह कार्य करता है और पुस्तकालय के बिना आधुनिक शिक्षा की कल्पना भी नहीं की जा सकती है,, अनौपचारिक शिक्षा में जहाँ शिक्षा अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होता है,, वहाँ पर पुस्तकालय की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है,, अनौपचारिक शिक्षा में जहाँ शिक्षा अप्रत्यक्ष रूप से औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है, यह शिक्षा क्षेत्र में आधार स्तंभ की तरह कार्य करता है,, शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकालय की भूमिका का विस्तृत विवरण आगे दिया गया है,, 


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(ii) शोध और अनुसंधानः 

आधुनिक विश्व और समाज अपने विकास के लिए शोधों पर आश्रित है और शोध कार्यों में सूचना और प्रलेखों की महत्ता जगजाहिर है,, शोध कार्यों में सफलता के लिए उपलब्ध ज्ञान तथा सूचना की जानकारी अतिआवश्यक है,, पुस्तकालय और सूचना केन्द्रों द्वारा सूचनाओं और प्रलेखों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रसारण किया जाता है,, जिसका उपयोग शोध कार्यों हेतु अति महत्वपूर्ण है तथा ये शोध कार्यों के आधार स्तम्भ है,, प्रत्येक तरह के शोध कार्यों जैसे- ऐतिहासिक, सामाजिक या वैज्ञानिक शोधों के क्षेत्र में पुस्तकालयों की भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो जाती है,, इसके अलावा पुस्तकालयों द्वारा शोध, प्रतिवेदन, रिपोर्ट एवं अन्य पुस्तकों का संग्रह किया जाता है तथा ज्ञान का संरक्षण भी किया जाता है,, इस प्रकार शोध हेतु पुस्तकालयों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है,, 


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(iii) सांस्कृतिकः

 पुस्तकालय वास्तव में संस्कृति का संरक्षक और संवाहक होता है,, पुस्तकालयों द्वारा पुस्तकों का संग्रह किया जाता है और उसे संरक्षित किया जाता है,, और यह बताने की जरूरत नहीं कि पुस्तकों और प्रलेखों के द्वारा ही हमें अपना इतिहास और सांस्कृतिक मूल्यों को भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सकता है,, इसके अलावा यह समाज के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखता है,, इस प्रकार पुस्तकालयों द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित किया जाता है एवं कई सांस्कृतिक गतिविधियों का संचालन जैसे नाटक, कवि गोष्ठी, कहानी चर्चा आदि कार्यक्रम भी किए जाते है,, इस प्रकार पुस्तकालयों की सांस्कृतिक गतिविधियों के संचालन और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है,,


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 (iv) सूचना संचारः

 पुस्तकालय और सूचना केन्द्रों द्वारा सूचनाओं और प्रलेखों का संग्रहण और व्यवस्थापन किया जाता है जिन कारण यह व्यवस्थित सूचनाओं का विशाल भंडार होता है तथा उपयोक्ता के आवश्यकतानुसार उन सूचनाओं का प्रसारण किया जाता है,, इस प्रकार पुस्तकालय द्वारा न केवल सूचना का संग्रह किया जाता है बल्कि इसका प्रसार भी किया जाता है,, इस प्रकार पुस्तकालय सूचना प्रसारण केन्द्रों के रूप में भी कार्य कर रहा है,, 


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(v) धार्मिक तथा आध्यात्मिकः

 पुस्तके कई तरह की होती है सूचनात्मक, मनोरंजनात्मक, प्रेरणात्मक आदि,, प्रेरणात्मक पुस्तक प्रायः धर्म तथा आध्यात्मिक बातों पर आधारित होता है,, इस तरह के पुस्तकों का संग्रह करके पुस्तकालयों द्वारा धार्मिक तथा अध्यात्मिक कार्यों में योगदान दिया जाता है,, 


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(vi) मनोरंजन तथा फुर्सत के समय मेंः

 मानव के लिए रोटी कपड़ा और मकान के अलावा भी कई बातें महत्वपूर्ण है, जिसमें अपने दैनिक कार्यों के अलावा फुर्सत और खाली समय में मनोरंजन भी एक है,, प्रत्येक व्यक्ति अपने मनोरंजन के लिए कई तरह के साधनों का उपयोग करता है और उसमें सबसे ज्यादा सामान्य आदतें अध्ययन की पाई जाती है आज भी अधिकांश लोग अपने खाली समय में अध्ययन को प्राथमिकता देते है क्योंकि इससे मनोरंजन के अलावा सूचनात्मक अभिगमों की भी पूर्ति होती है,, इस प्रकार सिर्फ पनोरंजन ही नहीं बल्कि तथा फुर्सत के क्षणों में समय का सदुप्रयोग करना भी महत्वपूर्ण होता है और अगर अच्छी पुस्तकों में वह अपना खाली समय लगाए तो यह मानव के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण होता है,, इस प्रकार मनोरंजनात्मक तथा फुर्सत के क्षणों में पुस्तकालय का उपयोग मानव हेतु सर्वोत्तम उपयोग है,, 

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(vii) प्रजातांत्रिक मूल्यों का विकासः 

प्रजातांत्रिक देशों और समाजों द्वारा प्रत्येक नागरिक को अपने विकास एवं शिक्षा के लिए बिना किसी भेदभाव के समान अवसर की वकालत करता है,, तथा सूचनाओं का उपयोग मानवीय विकास के लिए बिना किसी भेदभाव के होने चाहिए, इस बात पर बल देता है,, और पुस्तकालयों द्वारा पुस्तकों एवं सूचनाओं का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रसारण बिना किसी भेदभाव के समस्त उपयोक्ताओं को किया जाता है,, इस प्रकार हम देखते हैं कि पुस्तकालयों खास कर सार्वजनिक पुस्तकालयों की सम्पूर्ण अवधारणा और उद्देश्य ही प्रजातांत्रिक मूल्यों पर आधारित होता है,, इसके द्वारा सेवा प्रदान करने में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है,, यह सभी धर्मों, वर्गों, लिंगों के लिए समान रूप से उपयोग हेतु अपनी सेवा प्रदान करता हैए जो प्रजातन्त्र के मौलिक सिद्धन्तो पर आधारित है एवं इस प्रकार प्रजातांत्रिक मूल्यों को प्रतिपादित किया जाता है,,


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 (viii) पुस्तकालय तथा परिवर्तनशील समाजः

 विज्ञान और तकनीकों के विकास के कारण समाज तेजी से परिवर्तित हो रहा है और इस कारण परिवर्तन के साथ सांमजस्य स्थापित करना काफी मुश्किल कार्य है,, परंतु पुस्तकालय एक एसी संस्था है जहां बदलते परिवेश में प्राचीन सूचनाओं का भी उतना ही महत्व होता है जितना की,, नवीन सूचनाओं का होता है इस कारण सूचनाओं का संग्रहण उसका अद्यतन संग्रह विकास काफी आवश्यक है साथ ही नवीन तकनीकों का प्रयोग, उसके माध्यम से सूचना सेवाओं में नवीनता लाने जैसे प्रयोगों का सहारा लेकर परिवर्तन से सामंजस्य बैठाया जाता है,, वर्तमान समय में सूचनाओं के प्रसारण हेतु इंटरनेट एवं अन्य संचार माध्यमों का उपयोग भी किया जा रहा है,,








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