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सूचना एवं सूचना विज्ञान (Information and Information Science)

 


सूचना एवं सूचना विज्ञान
Information and Information Science

सूचना एवं सूचना विज्ञान

        मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए मानवीय गतिविधियों से सीधा जुड़ा रहता है। मनुष्य चेतन एवं सामाजिक प्राणी होने से मनुष्य के मस्तिष्क में समय-समय पर विचार उत्पन्न होते रहते हैं, इन्हीं उत्पन्न विचारों को हम ‘सूचना' कहते हैं। सूचना शब्द का प्रयोग जानकारी, समझ, बुद्धि, ज्ञान, तथ्य आदि के लिए किया जाता है। इसी सूचना या ज्ञान को विभिन्न इस व्यक्त किया ता सकता है। मौखिक संकेतों व प्रलेखीय स्वरुपों द्वारा आदि।


सुचना का अर्थ एवं परिभाषा


        सूचना पद का अर्थ सूचित करना, कहना, समाचार, ज्ञान, बताई गई बात आदि से है। उत्पत्ति की दृष्टि से इन्फॉर्मेशन शब्द फॉरमेटिया अथवा फोरमा शब्द से बना है। दोनों ही शब्द किसी वस्तु को एक आकार एवं स्वरूप प्रदान करने के अभिप्राय को व्यक्त करते हैं।

 एन बैल्किन के मतानुसार- सूचना उसे कहते हैं, जिसमें आकार परिवर्तित करने कि क्षमता होती है। 

जे बीकर के मतानुसार- किसी विषय से सम्बन्धित तथ्यों को सूचना कहते हैंं।

हाफमैन के मतानुसार- सूचना वक्तव्यों, तथ्यों अथवा आकृतियों का संकलन होती है।

        इन परिभाषाओं के निष्कर्ष से हम कह सकते हैं कि जिस प्रकार तथ्य संख्याओं से युक्त होता है, ठिक उसी तरह सूचना अक्षरों से युक्त होती है। जब हम सूचना का उपयोग करते हैं तो हमारा लक्ष्य ज्ञान के उस अंश, विवरण और तथ्य तथा अभिप्राय से होता है, जिससे हमें अपने उद्देश्य की पूर्ति में सहायता मिलती है। 


सूचना की प्रकृति

        किसी भी जनतान्त्रिक समाज के समुचित क्रियान्वयन और व्यवस्थापन के लिए सूचना - आवश्यक है। सूचना आर्थिक एवं सामाजिक विकास का महत्त्वपूर्ण संसाधन है। सूचना की प्रकृति यह है कि वह सम्पूर्ण ज्ञान के परिप्रेक्ष्य में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। 

        डाटा, सूचना, ज्ञान और प्रज्ञा एक ही सूचना के क्रमश: भाग हैं, जो एक-दूसरे को समृद्ध करने में सहायक होते हैं। डाटा से सूचना एवं फिर ज्ञान और उसके बाद विद्वता या विवेक का स्तर ऊपर उठता है। प्रत्येक विषय सूचना के मुख्य भाग से सम्बद्ध होता है, इसलिए उसकी प्रकृति एवं महत्त्व उसके अभिगमों और आवश्यकता से सम्बन्धित होते हैं।

वर्सिंग एवं नेवलिंग के अनुसार सूचना के निम्नलिखित अभिगम हैं

1. संरचनात्मक अभिगम
2. ज्ञान अभिगम 
3. सन्देश अभिगम
4. अभिप्राय अभिगम 
5. प्रभाव अभिगम
6. प्रक्रिया अभिगम


सूचना एवं ज्ञान


        मैकल्प व मैन्सफील्ड ने सूचना को ज्ञान से अलग परिभाषित किया व दोनों को भिन्न बताया। मैकल्प व मैन्सफील्ड के मतानुसार, सूचना खण्डश: अंश एवं विशिष्ट है, इसके विपरीत ज्ञान संरचनात्मक, सुसंगत और सार्वभौमिक है। उनके सूचना समयबद्ध, अल्पकालीन , सम्भवत: क्षणभंगुर प्रवाह है, जबकि ज्ञान एक वृहद् भण्डार है, जोकि प्रवाह का परिणाम है।

कहा जा सकता है कि सूचना आपस में जुड़कर ज्ञान भण्डार को प्रभावित, पुन: संगठित या किसी भी प्रकार से परिवर्तित कर सकती है।

सूचना की विशेषताएँ

वर्तमान युग में राष्ट्र के बहुमुखी विकास एवं समृद्धि के लिए सूचना को एक सशक्त एवं उपयोगी संसाधन माना जाता है। किसी राष्ट्र के उत्थान, विकास व समृद्धि के लिए एक सन्तुलित सूचनातन्त्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 


 सूचना की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं .

1. सूचना उत्पाद एवं प्रक्रिया दोनों है। 

2. यह ज्ञानार्जन का प्रथम सोपान है। 

3. सूचना की उपयोगिता के कारण इसे शक्ति की संज्ञा दी जाती है। 

4. सूचना किसी भी देश के राष्ट्रीय विकास का स्रोत होती है। 

5. देश की राष्ट्रीय सम्पत्ति सूचना होती है।

6. सूचना वैज्ञानिक अध्ययन से लेकर सामाजिक, औद्योगिक एवं व्यक्तिगत विकास का आधार होती है।

7. सूचना से ही किसी प्रयास एवं उद्यम का आरम्भ होता है। 

8. सूचना मनोरंजनात्मक क्रियाकलापों के लिए भी आवश्यक होती है। 

9. सूचना एक परिघटना के रूप में परिलक्षित होती है।

10. यह शोध एवं विकास के निष्पादन का एक आवश्यक अवयव

होती है।


  इसके अतिरिक्त सूचना की विशेषताओं को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जाता है स्वाभाविक विशेषताएं एंव पाठक निर्भर विशेषताएँ। 

स्वाभाविक विशेषताएं

 इसके अन्तर्गत निम्नलिखित विशेषताएँ सम्मिलित हैं

1. यह सारपूर्ण तथा उद्देश्यपूर्ण होती है।

 2. सूचना ढाँचे में होती है तथा इसका विश्लेषण भी किया जा सकता है। 

3. यह अभिलेखित की जा सकती है। इसके अतिरिक्त इसका अन्य माध्यमों में परिवर्तन किया जा सकता है।


 पाठक निर्भर विशेषताएँ

 इसके अन्तर्गत निम्नलिखित विशेषताओं को रखा जा सकता है

1. यह मूल्यांकन करने योग्य हो सकती है। 

2. इसकी व्याख्या हो सकती है। 

3. कभी-कभी इसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है।


सूचना के प्रकार


        सूचनाओं को विशेषताओं के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकारों से विभाजित किया गया है।

 प्रत्ययात्मक सूचना किसी समस्या के अस्थिर क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाले विचार 'सिद्धान्त, परिकल्पनाएँ आती हैं। 

अनुभव सिद्ध सूचनाएँ प्रयोगशाला जनित साहित्यिक खोज अथवा शोध के लिए स्वयं के अनुभवों से प्राप्त आँकड़े आते हैं। 

कार्य विधिक सूचना शोधकर्ता को अधिक प्रभावी तरीके से कार्य करने योग्य बनाया जा सके।

 प्रेरक सूचना व्यक्ति स्वयं एवं वातावरण द्वारा प्रभावित सूचना से प्रेरणा लेता है। नीति से सम्बन्धी सूचना इस प्रकार की सूचनाओं के अन्तर्गत निर्णय निर्धारण प्रक्रिया से सम्बन्धी सूचना आती हैंं। 

दिशासूचक सूचना इसके माध्यम से सामूहिक गतिविधियों में सहयोग एवं समन्वय प्राप्त किया जा सकता है।

सूचना व्यवहार 

        सूचना व्यवहार का अर्थ उपयोक्ताओं द्वारा सूचना खोजने, उनको प्राप्त करने और सूचना प्राप्ति के द्वारा उनका प्रयोग करने का तरीका है। पुनः उपयोक्ताओं के सूचना सम्बन्धित . व्यवहार के दो पक्ष होते हैं

        शाब्दिक व्यवहार उपयोक्ता क्या अभिव्यक्त करता है और क्या पसन्द करता है और क्या 'काम करता है? इन सबका सम्बन्ध उपयोक्ता के शाब्दिक व्यवहार से होता है। 

        वास्तविक व्यवहार इसके अन्तर्गत उपयोक्ताओं का वास्तविक व्यवहार प्रसूची के समीप, स्टैक क्षेत्र तथा सन्दर्भ विभाग या पत्रिका विभाग बिल्कुल भिन्न होते हैं। यहाँ ऐसे सूचना स्रोत का भी उपयोग कर सकते हैं जिनके बारे में उन्होंने उपयोग की प्राथमिकता की अभिव्यक्ति नहीं की है।

'अतः हम कह सकते हैं कि सूचना व्यवहार के अन्तर्गत उपयोक्ताओं के वास्तविक व्यवहारका विश्लेषण करते हैं और उनके शाब्दिक व्यवहार का उपयोग उपयोक्ता अध्ययन के रूप में करते हैं।


सूचना का महत्त्व


प्राचीन काल से लेकर आज तक सूचना की महत्ता हमारे समाज में आवश्यक रूप से रही है। सूचना जो कभी कुछ लोगों तक सीमित रहती थी, वहीं आज सूचना का विस्फोट हो रहा है।

 सूचना की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है। इसके महत्त्व निम्नलिखित हैं-

• सूचना अत्यन्त तीव्रगति से उत्पन्न होती है, जिस कारण यह मानव के प्रत्येक क्रियाकलाप में व्याप्त हो चुकी है।

• सूचना राष्ट्र के विकास में उपयोगी भूमिका निभाती है।

• सूचना वैज्ञानिक अनुसन्धान अति आवश्यक सामग्री है।।

• सूचना वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसन्धान के लिए अहम है। ये कार्य सूचना के बिना सार्थक सिद्ध नहीं हो सकते हैं।

• आज के युग में सूचना को शक्ति की संज्ञा दी गई है। यही कारण है कि जिन देशों में सूचना का बाहुल्य है, वे सम्पन्न एवं शक्तिशाली है।


        मनुष्य किसी-न-किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सूचना की आवश्यकता को महसूस करता है। आप भ्रमण करना चाहते हैं, आपको उन मार्गों, परिवहन सेवाओं, होटल सुविधाओं और इसी तरह अन्य जानकारियों की आवश्यकता होती है, आप किसी पुस्तकालय में भी जा रहे हो तो आपको वहाँ की जानकारी होनी आवश्यक है। वास्तव में सूचना आज हमारे हर पहलू से जुड़ी है और हमें प्रभावित करती रहती है।

सूचना की उपयोगिता

 सूचना की आवश्यकता और उपयोगिता के क्षेत्र निम्नलिखित हैं

• शोध एवं विकास हेतु . व्यावसायिकों के लिए

• व्यापार हेतु . नियोजन एवं नीति निर्धारण हेतु

• प्रबन्धन एवं निर्णयन हेतु


सूचना एक संसाधन/वस्तु के रूप में


सूचना वर्तमान समय में महत्त्वपूर्ण संसाधन बन गई है, इसके बिना कोई कार्य सम्भव नहीं है। आज हर व्यक्ति को सूचना की आवश्यकता होती है। पठन-पाठन, अनुसन्धान और भी अनेक क्षेत्रों में सूचना उपयोगी होती है। सूचना विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत व्यावसायिक कर्मियों आदि के लिए आवश्यक है। डॉक्टर, वकील. न्यायाधीश, इंजीनियर, प्रबन्धक और तकनीकी कर्मियों सभी के लिए यह सफलता का मुख्य आधार है। यही कारण है कि आज यह एक उपयोगी संसाधन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।

सूचना संसाधन वे स्रोत हैं जिन्हें इस प्रकार संस्थापित किया जाता है, जिससे वे पुन: उपयोग में लाए जा सकें। सूचना संसाधन एक एकीकृत करने वाली यन्त्र रचना है। यह यन्त्र रचना सूचना स्रोतों को एकीकृत कर उपयोक्ताओं को सूचना प्रस्तुत करती है। 

सूचना संसाधन के स्रोत

 सूचना संसाधन के निम्नलिखित दो स्रोत हैं


1. प्रलेखीय स्रोत 

यह विचारों में निहित होता है। यह कागज पर किया गया अभिलेख कार्य होता है, जिस कारण इसे भौतिक रूप से उपयोग किया जा सकता है एवं आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित भी किया जा सकता है। प्रलेखीय स्रोत की सबसे बड़ी विशेषता इसे संग्रहित करने की सुविधा होती है।

इस स्रोत को अनेक रूपों में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। पारम्परिक, अपारम्परिक, नव-पारम्परिक, अनुप्रलेख इत्यादि।

2. अप्रलेखीय स्रोत-

 इसके अन्तर्गत निम्नलिखित स्रोत सम्मिलित होते हैं। 

सांस्थानिक स्रोत विभिन्न संस्थान सूचना का सबसे बड़ा स्रोत होते हैं। इनमें शैक्षिक संस्थान, सरकारी कार्यालय जैसे पत्र सूचना कार्यालय आदि प्रमुख हैं।

मानव स्रोत सहकर्मी, समकक्ष वर्ग, सूचना गेटकीपर, मार्गदर्शक, सलाहकार, परामर्शदाता, विक्रेता एवं सहयोगी इत्यादि।

सूचना समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, इसलिए यह एक महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में मानी जाती है। सचना आज किसी भी देश के संसाधनों को उपयुक्त उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित करने में एक संसाधन के रूप में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

सूचना एक पदार्थ के रूप में भी उपयोग में लाई जा रही है, क्योंकि सरकारी अधिकारियों से लेकर सामान्य मनुष्य (जनता) तक सूचना निर्णय लेने के लिए आवश्यक वस्तु होती है। सूचना भी अन्य पदार्थों की तरह मूल्यवान होती है। इसका अपना अलग बाजार मूल्य होता है। इसी कारण यह आज एक व्यावसायिक वस्तु बन गई है और अन्य वस्तुओं की तरह ही इसका क्रय-विक्रय होने लगा है। इन सब बातों के आधार पर कह सकते हैं कि सूचना विनिमय की एक मूल्यवान वस्तु बन गई है, जिसकी उपयोगिता दिनो-दिन बढ़ती जा रही है।

रोचक तथ्य-

• सूचना तक पहुँच बढ़ाने के लिए सूचना के अधिकार (आरटीआई) की व्यावहारिकं व्यवस्था को उल्लिखित करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम वर्ष 2005 में बनाया गया।

• केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी जनता से सूचना हेतु अनुरोध प्राप्त करेगा, सूचना 30 दिन की अवधि के भीतर प्रदान कराई जाएगी।

• वर्ष 1959 में "सूचना" पद का प्रयोग सर्वप्रथम किया गया था।

• फेसबुक आज सूचना प्रसारण का सशक्त माध्यम बनकर सामने आया है।

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