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आइये पुस्तकालय विज्ञान को आसान बनाये।

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सूचना स्रोत (Information Sources)

 सूचना स्रोत (Information Sources) 

सूचना स्रोत


-पुस्तकालय प्रलेख के स्वरूपः पुस्तकालय प्रलेखों को उसके भौतिक विशेषताओं (Physical Characteristics) और सूचनात्मक विशेषताओं (Information Characteristics) के आधार पर बांटा जा सकता है। 


-भौतिक विशेषताओं (Physical Characteristics) के आधार परः डॉ रंगनाथन द्वारा पुस्तकालय प्रलेखों को भौतिक विशेषताओं के आधार पर का इस प्रकार बांटा गया है: 



Documents से Conventional, Neo-csnventional, Non-conventional, Meta-documents 


-Conventional documents इस तरह के प्रलेख पुस्तकालय के परंपरागत प्रलेख होते है जो साधारणतः लिखित या मुद्रित स्वरूप में होते है जैसे -books, periodicals, maps, atlases, आदि। 


-Neo-conventional – इस तरह के प्रलेख पुस्तकालय के परंपरागत प्रलेखों की ही भांति लिखित या मुद्रित स्वरूप में होते है परंतु इसमें विशिष्ट तरह की सूचना रहती है जैसे – Standards, Specifications, Patents, Data, आदि। 


-Non-Conventional Documents – इस तरह के प्रलेख पुस्तकालय के अपरंपरागत प्रलेख होते है जो साधारणतः लिखित या मुद्रित स्वरूप में नहीं होते है बल्कि कम्प्युटरीकृत और मशीन पठनीय स्वरूप में होती है। जैसे – Audios, Visuals, Audio-Visuals, Microforms, आदि। 


-Meta-documents – इस तरह के प्रलेख वैसे होते है जो लिखित या मुद्रित स्वरूप में नहीं होते परंतु मानव मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है जैसे -Instrument technology, Photography, आदि। 


-सूचना विशेषताओं (Information Characteristics) के आधार पर: पुस्तकालय प्रलेख का सूचना विशेषताओं के आधार पर विभाजन Hanson और Grogan के सिद्धांतों पर आधारित है। 

-Hanson ने प्रलेखों को दो भागों में विभाजित किया था -प्राथमिक और द्वितीयक प्रलेख (Primary and Secondary Document)। 


-Grogan द्वारा इसे पुनः तीन भागों में प्राथमिक, द्वितीयक और ततीयक प्रलेख (Primary, Secondary and Tertiary Document) में विभाजित किया। 


प्रलेखीय स्रोत (Documentary Sources) 


-प्राथमिक प्रलेख (Primary Documents): ऐसे प्रलेख नवीन ज्ञान को प्रदर्शित करता है। ऐसे प्रलेख उपयोक्ताओं को पहली बार सूचना मुहैया कराती है तथा इस तरह की सूचना पूर्व प्रकाशित नहीं हुई रहती है। जैसे -Thesis, Research journals, reports, patents, trade literature, conference proceedings and official publications और standards 


-द्वितीयक प्रलेख (Secondary Documents): द्वितीयक प्रलेख वैसे प्रलेख होते है जिसमें सूचनाओं को प्राथमिक स्रोतों से इकट्ठा किया जाता है। अर्थात यह प्राथमिक प्रलेखों का संगठित और पुर्नत्पादित स्वरूप है। जैसे-Indexes, Bibliographies, Abstracts, State-of-the-art, Reviews, Treatises, Book, Biographies, Histories, Procedures, Theories, Dictionaries, Encyclopaedias, Handbooks, Manuals, etc. 


-तृतीयक प्रलेख (Tertiary Documents): ये वैसे स्रोत है जो शोधकर्ताओं या उपयोक्ताओं को द्वितीयक स्रोत उपयोग के लिए मार्ग प्रशस्त करता है, जैसे -Directories, Yearbooks, Bibliographies of Bibliographies, Lists of Research-in-Progress projects, Guides to Literature, Guides to Organizations, Guides to Libraries, Textbooks etc. 


-प्रमुख प्राथमिक सूचना स्रोत : प्राथमिक सूचना स्रोतों के कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार है -


पत्रिका/ सामयिक प्रकाशन (Periodicals/ Journals): यह सबसे प्रमुख प्राथमिक सूचना स्रोत है जिसमें किसी विषय से संबंधीत नवीन शोध और ज्ञान एक निश्चित अवधि में क्रमिक रूप से प्रकाशित होता है। इस तरह के प्रकाशनों में मौलिक अनुसंधान पर आधारित लेख प्रकाशित होते है जिसमें अद्यतन सूचना होता है। यह किसी विषय से जुड़े नवीन ज्ञान की प्राप्ति और शोध कार्यों हेतु महत्वपूर्ण होता है।


• सम्मेलन कार्यवाहियाँ (Conference Proceedings) : प्रत्येक विषय में समय-समय पर सम्मेलन और कार्यवाहियों का आयोजन किया जाता है जो विद्वानों के विचार विमर्श का बेहतर माध्यम है और इसमें विद्वानों द्वारा नवीन आलेख प्रस्तुत किए जाते है और इसपर विचार विमर्श आयोजित किया जाता है। तत्पश्चात इन आलेखों को प्रकाशित किया जाता है जिसे सम्मेलन कार्यवाहियाँ कहा जाता है। यह प्रमुख प्राथमिक सूचना स्रोत है। 


शोध प्रबंध या शोध प्रतिवेदन (Thesis or Research Reports): प्रत्येक विषयों में शोधकर्ताओं द्वारा निरंतर शोध किया जा रहा है। उन शोधों को अंत में प्रस्तुत और प्रकाशित किया जाता है जो शोध प्रबंध कहलाते है। इसमें शोध एवं विकास से संबन्धित तथ्यों एवं नवीन सूचनाओं को प्रस्तुत किया जाता है। 


एकस्व (Patents) : एकस्व सरकार/शासन और किसी वस्तु के अनुसंधानकर्ता/ आविष्कारकर्ता के मध्य हुए समझौते का प्रमाण पत्र होता है। इस प्रमाण पत्र के द्वारा आविष्कारकर्ता को उसके द्वारा किए गए आविष्कारों/कार्यों पर निश्चित अवधि के लिए कानूनी तौर पर स्वामित्व प्रदान किया जाता है और बिना अनुसंधानकर्ता/ आविष्कारकर्ता के अनुमति के इसको किसी और द्वारा उत्पादित नहीं किया जा सकता। भारत में पेटेंट प्रदान करने का कार्यालय नागपुर में अवस्थित है। 


• मानक (Standard) : यह भी एकस्व के समान ही उत्पाद से संबन्धित है, इसके द्वारा किसी उत्पाद हेतु मानकों का प्रकाशन किया जाता है। कोई उत्पाद इन मानकों पर खरा उतरकर ही विश्वसनीयता हासिल कर सकता है। ये प्रमुख प्राथमिक स्रोत है। 


-द्वितीयक प्रलेख (Secondary Documents) : द्वितीयक प्रलेख वैसे प्रलेख होते है जिसमें सूचनाओं को प्राथमिक स्रोतों से इकट्ठा किया जाता है। अर्थात यह प्राथमिक प्रलेखों का संगठित और पुनरुत्पादित स्वरूप है। ऐसे स्रोत प्राथमिक स्रोत के लिए गेटवे का भी कार्य करता है। इसे तीन तरह से विभाजित किया जा सकता है 


 (1) वैसे प्रलेख जो प्राथमिक स्रोत से इकट्ठे किए जाते है तथा द्वितीय स्रोत के उपयोग के लिए मार्गदर्शक होते है, जैसे indexes, bibliographies, abstracts, etc. 


(2) वैसे प्रलेख जो प्राथमिक स्रोत के सर्वे पर आधारित होते है, जैसे state-of-the-art, reviews, treatises, etc.


 (3) यह प्रलेख किसी विषय पर विस्तृत सूचना प्रदान करता है जो प्राथमिक स्रोत से संकलित और चयनित किए गए होते है, जैसे -book, biographies, histories, procedures, theories, Dictionaries, encyclopaedias, handbooks, manuals, etc. 


-तृतीयक प्रलेख (Tertiary Documents): ये वैसे स्रोत है जो शोधकर्ताओं या उपयोक्ताओं को द्वितीयक स्रोत उपयोग के लिए मार्ग प्रसस्त करता है। जैसे -Directories, Yearbooks, Bibliographies of Bibliographies, Lists of Research-in-Progress projects, Guides to Literature, Guides to Organizations, Guides to Libraries, Textbooks etc. 


अप्रलेखीय स्रोत (Non-Documentary Sources): 


-सूचना के अप्रलेखीय स्रोत वैसे स्रोत होते है जो मुद्रित या लिखित स्वरूप यानि परंपरागत प्रलेख के रूप में नहीं होते है। सूचना के अप्रलेखीय स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। सूचना के अप्रलेखीय स्रोतों के परंपरागत स्रोत इस प्रकार है -


संस्थागत स्रोत (Institutional Sources) : वर्तमान समय में कई प्रणाली एवं संस्था है जो उपयोक्ताओं को उसके अनुरूप सूचना उपलब्ध करा रही है। ये सूचना उत्पादित कर रहे है, संग्रहीत या व्यवस्थापित कर रहे है। इस प्रकार संस्थागत सूचना स्रोत अहम सूचना स्रोत है। संस्थागत सूचना स्रोत के कुछ प्रकार इस प्रकार है-प्रलेखन केंद्र (Documentation Centres), सूचना केंद्र (Information Centres), सूचना विश्लेषण केंद्र (Information Analysis Centres), डाटा केंद्र (Data Centres), संदर्भ केंद्र (Reference Centres), आदि। यह 


विश्वविद्यालय (University) : विश्वविद्यालय सिर्फ शिक्षण केंद्र ही जा नहीं होते बल्कि शोध कार्यों के लिए भी प्रतिबद्ध होते है। शोध कार्यों के उपरांत शोधार्थी द्वारा शोध प्रबंध या रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाते है और यह शोध प्रबंध एक महत्वपूर्ण प्राथमिक सूचना स्रोत है। इस प्रकार विश्वविद्यालय प्रमुख सूचना केंद्र के रूप में कार्य करता है और शोध प्रबंध महत्वपूर्ण सूचना स्रोत है। 


सरकारी संस्थान (Govermental Institutions): कई सरकारी विभागों और मंत्रालयों द्वारा सूचनाओं का प्रकाशन रिपोर्ट, कार्यवाही, आदि रूपों में होते है जैसे -Cencus of India ये वैसे स्रोत है जिसके आंकड़ों या सूचनाओं को काफी विश्वसनीय माना जाता है। 


सम्मेलन (Conference): सम्मेलन का आयोजन किसी विषय पर विद्वानों के विचार विमर्श का बेहतर माध्यम है और विचार विमर्श के दौरान नए ज्ञान की उत्पत्ति होती है। इन सम्मेलन कार्यवाहियों का प्रकाशन पुस्तक रूप में किया जाता है जो एक प्रमुख सूचना स्रोत है।


मानवीय स्रोत (Human Sources) : मानव सभ्यता के शुरुआत से अब तक प्रमुख सूचना के स्रोत रहे है और इसका महत्व कभी खत्म नहीं हो सकता। मानव अपने जीवन काल में अध्ययन और अनुभव से कई ज्ञान को अर्जित करता है जो अन्य और आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान के स्रोत होते है। 


इन्विसेबल कॉलेज (Invisible college): यह शब्द का प्रयोग सन 1972 में Derek J-de Solla Price द्वारा किया गया है जिसका अर्थ किसी सामान प्रोफेशनल समूह के बीच, किसी प्रोफेशनल मुद्दे पर विचार-विमर्श से है। ऐसा संवाद या विचार-विमर्श प्रमुख सुचना स्रोत होते है।


 -इलेक्ट्रोनिक/ डिजिटल सूचना (Computerised Form) : इलेक्ट्रोनिक और डिजिटल सूचना आधुनिक समय के सबसे प्रमुख सूचना स्रोत है जो ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों माध्यम से उपलब्ध होते है और ऐसे सूचना स्रोत प्रायः कम्प्युटर पठनीय स्वरूप में होते है। यह काफी कम स्थान में काफी सूचनाएँ संग्रहीत किए हुए होता है, जैसे -Audio Viduals, CD-Rom, Hard Disk, आदि सूचनाएँ इस श्रेणी में आता है। 


-ऑनलाइन स्वरूप (Online Information) : वर्तमान समय में ऑनलाइन सूचना या इन्टरनेट सूचना सामग्रियों का काफी क्रेज है जो इलेक्ट्रोनिक और डिजिटल सूचना है। ऐसे सूचना HTML जैसे भाषाओं में लिखे होते है और इन्टरनेट पर उपलब्ध होते है। आजकल पुस्तक, समाचार पत्र, पत्रिका, औडियो-वीडियो, शोध लेख, शब्दकोश, विश्वकोश, बिब्लिओग्राफी, आदि सभी सूचना उत्पाद ऑनलाइन और इलेक्ट्रोनिक/ डिजिटल सूचना स्वरूप में उपलब्ध है और जिस तरह इसका प्रयोग बढ़ रहा है, इस बात की आशंका गलत नहीं है कि आने वाले समय में सूचना स्रोतों का सिर्फ यही स्वरूप अस्तित्व में रहेगा। 


-डाटाबेस (Database) : सूचना प्रौद्योगिकी के विकास ने सूचना सेवाओं का स्वरूप भी बदलकर रख दिया है और इसके प्रभाव से डाटाबेस तथा ऑनलाइन सेवाओं का महत्व बढता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण तत्काल सूचना पुनप्राप्ति में सक्षमता, संग्रहण और व्यवस्थापन में सुगमता है। साथ ही इसे अद्यतन (Up-to-date) रखना भी आसान होता है। वास्तव में डाटाबेस किसी विषय तथा क्षेत्र से संबन्धित सूचनाओं/ डाटाओं का संग्रहीत स्वरूप है। इसका उपयोग आवश्यक सूचनाओं की प्राप्ति हेतु किया जाता है। 

-यह साधारणतः दो प्रकार का होता है -संदर्भ डाटाबेस और स्रोत डाटाबेस (Reference Database and Source Database)। संदर्भ डाटाबेस में पूर्ण सूचना नहीं होती अपितु इसमें सूचनाओं से संबन्धित संदर्भ दिये जाना होते है कि अमुक सूचना कहाँ मिलेगी। वही स्रोत डाटाबेस में मूल सूचनाओं का संग्रह होता है और उपयोक्ताओं को इलेक्ट्रोनिक सूचनाओं का अभिगम उपलब्ध कराता है। 



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