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पुस्तकालय विज्ञान के सूत्र (Laws of Library Science)

पुस्तकालय विज्ञान के सूत्र (Laws of Library Science)

पुस्तकालय विज्ञान के पाँच सूत्र: डॉ एस. आर. रंगनाथन





पुस्तकालय विज्ञान के पाँच सूत्र: डॉ एस. आर. रंगनाथन



- रंगनाथन ने सर्वप्रथम इन सूत्रों का प्रतिपादन सन् 1928 में मीनाक्षी कॉलेज, अन्नामलाईनगर किया गया और सन् 1931 में इनका प्रकाशन ‘Laws of Library Science' नाम से पुस्तक रूप में किया गया,,

- इस पुस्तक की प्रस्तावना (Foreword) P.S.Sivaswami Aiyer एवं भूमिका (Introduction) W.C.Berwick Sayers ने लिखी थी एवं इस पुस्तक का प्रकाशन मद्रास लाइब्रेरी एसोसिएशन ने किया था,,



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- इन पाँच सूत्रों में पुस्तकालय के सम्पूर्ण उद्धेश्य को समाहित किया गया है,, ये पाँच सूत्र इस प्रकार है - पुस्तकें उपयोगार्थ है (Books are for use); प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक (Every Reader his/her Book) या पुस्तकें सर्वार्थ है (Books are for all ); प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक (Every book it's Reader); पाठक का समय बचाओ (Save the time of the Reader) एवं ग्रन्थालय वर्धनशील संस्था है (Library is a Growing Organism)

- रंगनाथन महोदय द्वारा दिए गए इन पाँच सूत्रों को ग्रन्थालय कार्य के प्रत्येक क्षेत्र में आधारभूत प्रमुख तथा आदर्शक सिद्धांत माना जाता है,, यह पंचसूत्र आज भी उतने प्रासंगिक है जितना सन 1931 में था,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का प्रथम सूत्र म सूत्र यह जोर देता है कि पुस्तकों का अत्यधिक उपयोग हो और रंगनाथन ने अपने प्रथम सूत्र में साफ-साफ कहा है कि -"ग्रन्थ उपयोगार्थ है”,, यानि कि पुस्तके उपयोग के लिए होती है न कि इसे लॉकर में रखकर या सिर्फ संरक्षित किया जाए,, साधारणतः उस काल में जब इस सूत्र की रचना की गई थी पुस्तकों के उपयोग से ज्यादा उसके संरक्षण पर जोर दिया जाता था,, हालांकि यह सूत्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का द्वितीपुस्तकालय विज्ञान के सूत्र (Laws of Library Science)



- रंगनाथन ने सर्वप्रथम इन सूत्रों का प्रतिपादन सन् 1928 में मीनाक्षी कॉलेज, अन्नामलाईनगर किया गया और सन् 1931 में इनका प्रकाशन ‘Laws of Library Science' नाम से पुस्तक रूप में किया गया,,

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- इस पुस्तक की प्रस्तावना (Foreword) P.S.Sivaswami Aiyer एवं भूमिका (Introduction) W.C.Berwick Sayers ने लिखी थी एवं इस पुस्तक का प्रकाशन मद्रास लाइब्रेरी एसोसिएशन ने किया था,,

- इन पाँच सूत्रों में पुस्तकालय के सम्पूर्ण उद्धेश्य को समाहित किया गया है,, ये पाँच सूत्र इस प्रकार है - पुस्तकें उपयोगार्थ है (Books are for use); प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक (Every Reader his/her Book) या पुस्तकें सर्वार्थ है (Books are for all ); प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक (Every book it's Reader); पाठक का समय बचाओ (Save the time of the Reader) एवं ग्रन्थालय वर्धनशील संस्था है (Library is a Growing Organism)

- रंगनाथन महोदय द्वारा दिए गए इन पाँच सूत्रों को ग्रन्थालय कार्य के प्रत्येक क्षेत्र में आधारभूत प्रमुख तथा आदर्शक सिद्धांत माना जाता है,, यह पंचसूत्र आज भी उतने प्रासंगिक है जितना सन 1931 में था,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का प्रथम सूत्र यह जोर देता है कि पुस्तकों का अत्यधिक उपयोग हो और रंगनाथन ने अपने प्रथम सूत्र में साफ-साफ कहा है कि -"ग्रन्थ उपयोगार्थ है”,, यानि कि पुस्तके उपयोग के लिए होती है न कि इसे लॉकर में रखकर या सिर्फ संरक्षित किया जाए,, साधारणतः उस काल में जब इस सूत्र की रचना की गई थी पुस्तकों के उपयोग से ज्यादा उसके संरक्षण पर जोर दिया जाता था,, हालांकि यह सूत्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का द्वितीय सूत्र यह जोर देता है कि पाठक को उसकी पुस्तकों मिले, साथ ही द्वितीय सूत्र यह जोर देता है कि पुस्तके सर्वार्थ है, यानि कि पुस्तके सभी के लिए है न कि किसी खास वर्ग विशेष के लिए,, पुराने समय में सिर्फ अमीर लोग ही पुस्तक पढ़ पाते थे परंतु रंगनाथन ने इस सूत्र के माध्यम से सबको पुस्तक पढ़ने के अधिकार पर जोर दिया,,

- द्वितीय सूत्र की रक्षा के लिए, जिसका मूल भाव सबके लिए पुस्तकालय सेवा की पहुँच है, के कार्यान्वयन के लिए राज्य, पुस्तकालय प्राधिकार एवं पाठकों के उत्तरदायित्व की बात करता है,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का तृपुस्तकालय विज्ञान के सूत्र (Laws of Library Science)




- रंगनाथन ने सर्वप्रथम इन सूत्रों का प्रतिपादन सन् 1928 में मीनाक्षी कॉलेज, अन्नामलाईनगर किया गया और सन् 1931 में इनका प्रकाशन ‘Laws of Library Science' नाम से पुस्तक रूप में किया गया,,

- इस पुस्तक की प्रस्तावना (Foreword) P.S.Sivaswami Aiyer एवं भूमिका (Introduction) W.C.Berwick Sayers ने लिखी थी एवं इस पुस्तक का प्रकाशन मद्रास लाइब्रेरी एसोसिएशन ने किया था,,

- इन पाँच सूत्रों में पुस्तकालय के सम्पूर्ण उद्धेश्य को समाहित किया गया है,, ये पाँच सूत्र इस प्रकार है - पुस्तकें उपयोगार्थ है (Books are for use); प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक (Every Reader his/her Book) या पुस्तकें सर्वार्थ है (Books are for all ); प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक (Every book it's Reader); पाठक का समय बचाओ (Save the time of the Reader) एवं ग्रन्थालय वर्धनशील संस्था है (Library is a Growing Organism)

- रंगनाथन महोदय द्वारा दिए गए इन पाँच सूत्रों को ग्रन्थालय कार्य के प्रत्येक क्षेत्र में आधारभूत प्रमुख तथा आदर्शक सिद्धांत माना जाता है,, यह पंचसूत्र आज भी उतने प्रासंगिक है जितना सन 1931 में था,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का प्रथम सूत्र यह जोर देता है कि पुस्तकों का अत्यधिक उपयोग हो और रंगनाथन ने अपने प्रथम सूत्र में साफ-साफ कहा है कि -"ग्रन्थ उपयोगार्थ है”,, यानि कि पुस्तके उपयोग के लिए होती है न कि इसे लॉकर में रखकर या सिर्फ संरक्षित किया जाए,, साधारणतः उस काल में जब इस सूत्र की रचना की गई थी पुस्तकों के उपयोग से ज्यादा उसके संरक्षण पर जोर दिया जाता था,, हालांकि यह सूत्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का द्वितीय सूत्र यह जोर देता है कि पाठक को उसकी पुस्तकों मिले, साथ ही द्वितीय सूत्र यह जोर देता है कि पुस्तके सर्वार्थ है, यानि कि पुस्तके सभी के लिए है न कि किसी खास वर्ग विशेष के लिए,, पुराने समय में सिर्फ अमीर लोग ही पुस्तक पढ़ पाते थे परंतु रंगनाथन ने इस सूत्र के माध्यम से सबको पुस्तक पढ़ने के अधिकार पर जोर दिया,,

- द्वितीय सूत्र की रक्षा के लिए, जिसका मूल भाव सबके लिए पुस्तकालय सेवा की पहुँच है, के कार्यान्वयन के लिए राज्य, पुस्तकालय प्राधिकार एवं पाठकों के उत्तरदायित्व की बात करता है,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का तृतीय सूत्र प्रथम सूत्र की भाँति ग्रन्थों से संबंधित है और द्वितीय सूत्र का पूरक है,, इस सूत्र के अनुसार प्रत्येक पुस्तक को उसके अनुसार पाठक मिलनी चाहिए,,

- ग्रन्थालय विज्ञान का चतुर्थ सूत्र भी द्वितीय सूत्र की भाँति पाठको की ओर ही आगम करता है,, यह सत्य है कि यदि पाठदो की मानसिक भख को तत्काल शान्त न किया जाय तो वह नष्ट हो जाती है,, अतः पस्तकालय को समय की बचत करनी चाहिए,, इसके साथ ही पाठको के समय की बचत के साथ कर्मचारियों के समय की भी बचत होनी चाहिए,, वास्तव में यह सूत्र ग्रन्थालय प्रशासन तथा संचालन में सधारों द्वारा पाठकों को अधिक से अधिक सुविधाएँ प्रदान करने के प्रति जोर देता है,,


 - पुस्तकालय विज्ञान का पंचम सूत्र मुख्यतः ग्रन्थालय योजना तथा संगठन से सम्बंधित है,, वैसे यह सभी जानते है कि एक विकासशील संस्था ही जीवित रह सकती है अन्यथा उनका अन्त हो जाता है,, हालांकि इस बात पर ज्यादा ध्यान देना आवश्यक है कि रंगनाथन साहब ने ‘Organization' के स्थान पर “Organism' (जैविक वस्तु) शब्द का प्रयोग किया है अर्थात यह सिर्फ वृद्धि ही नहीं करता बल्कि पुराने सामग्रियों का त्याग भी करता है,,

- रंगनाथन के शब्दों में, "एक विकासशील संगठन नई सामग्री ग्रहण करता है, पुरानी सामग्री का त्याग करता है, अपने आकार में परिवर्तन में करता है और नई शक्ल तथा स्वरूप ग्रहण करता है,, कोई भी जीव जब तक जीवित रहता है, तब तक न सिर्फ नई कोशिकाओं को पैदा करता है,, बल्कि मृत कोशिकाओं का त्याग भी करता है,,


- पुस्तकालय के तीन प्रमुख तत्व होते है- पुस्तक, पाठक और कर्मचारी, इसे पुस्तकालय सेवा की त्रिमूर्ति कहा जाता है,, इनमें से किसी एक के बिना पुस्तकालय सेवा की कल्पना भी मुश्किल है,, और समय के साथ ही इन तीनों में वृद्धि भी स्वाभाविक है,,

- हालांकि इन तीनों के अलावा उपस्करों और तकनीकों को भी पुस्तकालय सेवा के तत्वों में शामिल किया जा सकता है और इसका भी समय के साथ विकास होता रहता है,,

- पंचम सूत्र के अनुसार साधारणतः पुस्तकालय का विकास दो प्रकार के होता है: बाल विकास (Child Growth) और वयस्क विकास (Adult Growth),,


-बाल विकास से तात्पर्य उस विकास से है जो स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जैसे- भवन निर्माण, पुस्तक खरीद, कर्मचारियों की नियुक्ति आदि,, वयस्क विकास दृष्टिगोचर नहीं होता जैसे - पुस्तकालय सेवाओं का गुणवत्ता सुधार, तकनीकों का विकास, पुस्तक खरीद, कर्मचारिया,, व्यावसायिक कौशल में विकास, आदि,, तीय सूत्र प्रथम सूत्र की भाँति ग्रन्थों से संबंधित है और द्वितीय सूत्र का पूरक है,, इस सूत्र के अनुसार प्रत्येक पुस्तक को उसके अनुसार पाठक मिलनी चाहिए,,

- ग्रन्थालय विज्ञान का चतुर्थ सूत्र भी द्वितीय सूत्र की भाँति पाठको की ओर ही आगम करता है,, यह सत्य है कि यदि पाठदो की मानसिक भख को तत्काल शान्त न किया जाय तो वह नष्ट हो जाती है,, अतः पस्तकालय को समय की बचत करनी चाहिए,, इसके साथ ही पाठको के समय की बचत के साथ कर्मचारियों के समय की भी बचत होनी चाहिए,, वास्तव में यह सूत्र ग्रन्थालय प्रशासन तथा संचालन में सधारों द्वारा पाठकों को अधिक से अधिक सुविधाएँ प्रदान करने के प्रति जोर देता है,,


 - पुस्तकालय विज्ञान का पंचम सूत्र मुख्यतः ग्रन्थालय योजना तथा संगठन से सम्बंधित है,, वैसे यह सभी जानते है कि एक विकासशील संस्था ही जीवित रह सकती है अन्यथा उनका अन्त हो जाता है,, हालांकि इस बात पर ज्यादा ध्यान देना आवश्यक है कि रंगनाथन साहब ने ‘Organization' के स्थान पर “Organism' (जैविक वस्तु) शब्द का प्रयोग किया है अर्थात यह सिर्फ वृद्धि ही नहीं करता बल्कि पुराने सामग्रियों का त्याग भी करता है,,

- रंगनाथन के शब्दों में, "एक विकासशील संगठन नई सामग्री ग्रहण करता है, पुरानी सामग्री का त्याग करता है, अपने आकार में परिवर्तन में करता है और नई शक्ल तथा स्वरूप ग्रहण करता है,, कोई भी जीव जब तक जीवित रहता है, तब तक न सिर्फ नई कोशिकाओं को पैदा करता है,, बल्कि मृत कोशिकाओं का त्याग भी करता है,,


- पुस्तकालय के तीन प्रमुख तत्व होते है- पुस्तक, पाठक और कर्मचारी, इसे पुस्तकालय सेवा की त्रिमूर्ति कहा जाता है,, इनमें से किसी एक के बिना पुस्तकालय सेवा की कल्पना भी मुश्किल है,, और समय के साथ ही इन तीनों में वृद्धि भी स्वाभाविक है,,

- हालांकि इन तीनों के अलावा उपस्करों और तकनीकों को भी पुस्तकालय सेवा के तत्वों में शामिल किया जा सकता है और इसका भी समय के साथ विकास होता रहता है,,

- पंचम सूत्र के अनुसार साधारणतः पुस्तकालय का विकास दो प्रकार के होता है: बाल विकास (Child Growth) और वयस्क विकास (Adult Growth),,


-बाल विकास से तात्पर्य उस विकास से है जो स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जैसे- भवन निर्माण, पुस्तक खरीद, कर्मचारियों की नियुक्ति आदि,, वयस्क विकास दृष्टिगोचर नहीं होता जैसे - पुस्तकालय सेवाओं का गुणवत्ता सुधार, तकनीकों का विकास, पुस्तक खरीद, कर्मचारिया,, व्यावसायिक कौशल में विकास, आदि,, य सूत्र यह जोर देता है कि पाठक को उसकी पुस्तकों मिले, साथ ही द्वितीय सूत्र यह जोर देता है कि पुस्तके सर्वार्थ है, यानि कि पुस्तके सभी के लिए है न कि किसी खास वर्ग विशेष के लिए,, पुराने समय में सिर्फ अमीर लोग ही पुस्तक पढ़ पाते थे परंतु रंगनाथन ने इस सूत्र के माध्यम से सबको पुस्तक पढ़ने के अधिकार पर जोर दिया,,

- द्वितीय सूत्र की रक्षा के लिए, जिसका मूल भाव सबके लिए पुस्तकालय सेवा की पहुँच है, के कार्यान्वयन के लिए राज्य, पुस्तकालय प्राधिकार एवं पाठकों के उत्तरदायित्व की बात करता है,,


- ग्रन्थालय विज्ञान का तृतीय सूत्र प्रथम सूत्र की भाँति ग्रन्थों से संबंधित है और द्वितीय सूत्र का पूरक है,, इस सूत्र के अनुसार प्रत्येक पुस्तक को उसके अनुसार पाठक मिलनी चाहिए,,

- ग्रन्थालय विज्ञान का चतुर्थ सूत्र भी द्वितीय सूत्र की भाँति पाठको की ओर ही आगम करता है,, यह सत्य है कि यदि पाठदो की मानसिक भख को तत्काल शान्त न किया जाय तो वह नष्ट हो जाती है,, अतः पस्तकालय को समय की बचत करनी चाहिए,, इसके साथ ही पाठको के समय की बचत के साथ कर्मचारियों के समय की भी बचत होनी चाहिए,, वास्तव में यह सूत्र ग्रन्थालय प्रशासन तथा संचालन में सधारों द्वारा पाठकों को अधिक से अधिक सुविधाएँ प्रदान करने के प्रति जोर देता है,,


 - पुस्तकालय विज्ञान का पंचम सूत्र मुख्यतः ग्रन्थालय योजना तथा संगठन से सम्बंधित है,, वैसे यह सभी जानते है कि एक विकासशील संस्था ही जीवित रह सकती है अन्यथा उनका अन्त हो जाता है,, हालांकि इस बात पर ज्यादा ध्यान देना आवश्यक है कि रंगनाथन साहब ने ‘Organization' के स्थान पर “Organism' (जैविक वस्तु) शब्द का प्रयोग किया है अर्थात यह सिर्फ वृद्धि ही नहीं करता बल्कि पुराने सामग्रियों का त्याग भी करता है,,

- रंगनाथन के शब्दों में, "एक विकासशील संगठन नई सामग्री ग्रहण करता है, पुरानी सामग्री का त्याग करता है, अपने आकार में परिवर्तन में करता है और नई शक्ल तथा स्वरूप ग्रहण करता है,, कोई भी जीव जब तक जीवित रहता है, तब तक न सिर्फ नई कोशिकाओं को पैदा करता है,, बल्कि मृत कोशिकाओं का त्याग भी करता है,,


- पुस्तकालय के तीन प्रमुख तत्व होते है- पुस्तक, पाठक और कर्मचारी, इसे पुस्तकालय सेवा की त्रिमूर्ति कहा जाता है,, इनमें से किसी एक के बिना पुस्तकालय सेवा की कल्पना भी मुश्किल है,, और समय के साथ ही इन तीनों में वृद्धि भी स्वाभाविक है,,

- हालांकि इन तीनों के अलावा उपस्करों और तकनीकों को भी पुस्तकालय सेवा के तत्वों में शामिल किया जा सकता है और इसका भी समय के साथ विकास होता रहता है,,

- पंचम सूत्र के अनुसार साधारणतः पुस्तकालय का विकास दो प्रकार के होता है: बाल विकास (Child Growth) और वयस्क विकास (Adult Growth),,


-बाल विकास से तात्पर्य उस विकास से है जो स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जैसे- भवन निर्माण, पुस्तक खरीद, कर्मचारियों की नियुक्ति आदि,, वयस्क विकास दृष्टिगोचर नहीं होता जैसे - पुस्तकालय सेवाओं का गुणवत्ता सुधार, तकनीकों का विकास, पुस्तक खरीद, कर्मचारिया,, व्यावसायिक कौशल में विकास, आदि
 
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