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पुस्तकालय सन्दर्भ सेवा

पुस्तकालय सन्दर्भ सेवा

Library Reference Service

पुस्तकालय सन्दर्भ सेवा
 

     शिक्षा के दायित्वों को पूर्ण करने हेतु को आदमी निरन्तर शोध तथा अध्ययन में लगे रहना अनिवार्य हो गया है। संस्कृत शब्दकोश के अनुसार, "एक साथ बाँधने वाला, संयोजित करने वाला, मिलाने वाला, बुनने वाला इत्यादि अर्थों में मूल तत्त्व या दो वस्तुओं के मध्य सम्पर्क स्थापित करने हेतु प्रयुक्त सेवा या कार्य को अभिव्यक्त करने हेतु सन्दर्भ सेवा पद का प्रयोग किया जाता है। अर्थात् पुस्तकालय सन्दर्भ सेवा से तात्पर्य उस व्यक्तिगत सेवा से है, जिसके द्वारा पाठकों को पुस्तकालय के उपकरण, वर्गीकरण, सूचीकरण आदि को समझने, उनका उपयोग करने, अध्ययन सामग्री की जानकारी प्राप्त करने तथा उसको खोजने में सहायता प्रदान की जाती है। एक शिक्षक, एक मार्गदर्शक तथा एक दार्शनिक की संज्ञा ग्रन्थावली को दी जाती है।”

 

सन्दर्भ सेवा क्या है-


    सन्दर्भ सेवा, पाठक और वांछित पुस्तक में सम्पर्क बनाने की क्रिया है। पाठक तथा सूचक सामग्री में सम्पर्क ही सन्दर्भ सेवा का उद्देश्य है । सन्दर्भ सेवा पुस्तकालय में संग्रहीत पुस्तकों और पत्रिकाओं में निहित ज्ञान को पाठकों तक पहुँचाने में उनकी सहायता है, जिससे वह उस ज्ञान को समझ सके और आवश्यकतानुसार उसको ज्ञान की वृद्धि में उपयोग कर सके।

 

 

सन्दर्भ सेवा की अवधारणा

    व्यक्ति को आवश्यक है कि वह साहित्य सिद्धान्त प्रयोग तथा मान्यताओं से हमेशा परिचित रहे। इसलिए उपरोक्त तथ्यों से परिचित रहने हेतु एक संस्था की आवश्यकता होती है साथ ही सामूहिक शोध के कारण आजकल नवीन तथ्यों की खोज तेजी से हो रही है । पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएँ गिनती में असंख्य हैं, इन सबका व्यावहारिक विद्यालय में संकलन सम्भव नहीं है, इसलिए पुस्तकालय नाम की एक अलग संस्था की आवश्यकता पड़ी। यह शब्द साहित्य को संगठित करता है तथा पाठकों को आवश्यकतानुसार उन्हें उपलब्ध कराता है। अर्थात् यह अप्रत्यक्ष रूप से जनता को जीवनपर्यन्त शिक्षा, सूचना तथा ज्ञान प्रदान करता है।

 

सामान्यतः पुस्तकालयों द्वारा पाँच प्रकार के गुणसूचक साहित्य प्रस्तुत किए जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं

1. सन्दर्भ ग्रन्थ यह स्मृति को हमेशा अद्यतन बनाए रखने का सहायक साधन है।

2. साहित्य ग्रन्थ कथा, उपन्यास, जीवनी, शोधग्रन्थ, संस्मरण तथा पत्र साहित्य ये साहित्य गुणों से अलंकृत, मनोरंजक, उत्साहवर्द्धक तथा प्रेरणादायक विचारोत्तेजक और कल्पना साहित्य हैं।

3. साधारण पुस्तक और पत्रिकाएँ सामान्य पाठकों की ग्रहण शक्ति को ध्यान में रखते हुए ये उनहेतु निर्मित अध्ययन सामग्री हैं।

4. मानक ग्रन्थ और शोध पत्रिकाएँ ये मानवीय प्रतिभा को सक्रिय बनाती हैं। 

5. उपजीव्य तथा अक्षर साहित्य सार्वजनिक दृष्टि से तथा विचारों से परिपूर्ण सर्जनात्मक साहित्य |

     पाठकों को अपने विषय से परिचित होने हेतु हर समय की जानेवाली व्यक्तिगत सेवा उसके प्रश्न या समस्याओं को अच्छी तरह समझकर समाधान हेतु आवश्यक साहित्य उपलब्ध कराना सूचनाएँ एकत्रित कर प्रस्तुत करना उनकी बौद्धिक कठिनाइयों को समझ कर अपने आवश्यक व्यवहार से अपाठकों को भी पाठक बनाना, उसमें अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न करना और उनके विषयों या रुचि से सम्बन्धित सन्दर्भों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करना आदि बौद्धिक तथा अन्य वैयक्तिक सहायता को सन्दर्भ सेवा कहा जाता है।

 

सन्दर्भ सेवा की परिभाषाएँ

    ए एल ए के अनुसार, "पुस्तकालय का वह पक्ष या पहलू जो अध्ययन या शोध हेतु पुस्तकालय साधनों के उपयोग में सूचना प्राप्त करने में पाठकों की सहायता से साक्षात् रूप में सम्बन्धित है, सन्दर्भ सेवा कहलाता है।"

विलियन बी. चिल्ड्स के अनुसार, "सन्दर्भ कार्य से तात्पर्य पुस्तकालयाध्यक्ष द्वारा पाठकों को सूची की जटिलता से परिचित करने में प्रश्नों के उत्तर देने में और संक्षेप में उपलब्ध साधनों (साहित्य) को प्राप्त करने में प्रदत्त हर सम्भव सेवा से है।"

    जेम्स आई वायर के अनुसार, "अध्ययन और शोध कार्य हेतु पुस्तकालय संग्रह की व्याख्या करने में प्रदत्त सहानुभूति और अनौपचारिक वैयक्तिक सहायता को सन्दर्भ कार्य कहते हैं।"

    डॉ. रंगनाथन के अनुसार, "सन्दर्भ सेवा प्रत्येक पाठक को उसकी तात्कालिक रुचि के अनुसार ठीक-ठीक निशेष एवं अविलम्ब रूप से दस्तावेज प्राप्त करने में सहायता करना वैयक्तिक सेवा है।"

    लुसी आई एडवर्ड्स के अनुसार, "प्रत्येक पाठक हेतु अधिकतम सावधानी तथा न्यूनतम सम्भव विलम्ब के साथ अभीष्ट सूचना प्राप्त करने हेतु, सामर्थ्यवान बनाने हेतु एक वैयक्तिक तथा व्यक्ति सेवा है।'

    ए सी फासकेट के अनुसार, "आचरण में अनिवार्य रूप से मानवतावाद है, क्योंकि ज्ञान धारण से अधिक सुख प्राप्ति हेतु मनुष्यों को किसी-न-किसी प्रकार सहायता देना ही उद्देश्य है।'

    अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन के अनुसार, "पुस्तकालय का वह पक्ष या पहलू जो अध्ययन या शोध हेतु पुस्तकालय साधनों के उपयोग में तथा सूचना प्राप्त करने में पाठकों की सहायता से प्रत्यक्ष रूप में सम्बन्धित है, वह सन्दर्भ कार्य कहलाता है।"

 

सन्दर्भ सेवा की उपयोगिता

    पुस्तकालय सेवा पुस्तकों, पाठकों तथा स्टाफ की तिकड़ी है। इन तीनों के मध्य समन्वय स्थापित करने हेतु सन्दर्भ सेवा की आवश्यकता होती है। पुस्तकों का संग्रहण तथा संगठन करना, उनका संरक्षण तथा पाठकों द्वारा माँग किए जाने पर उनका संरक्षण तथा पाठकों को प्रदान करना, आस-पास के लोगों को पुस्तकालय की ओर आकर्षित करना तथा उन्हें नियमित रूप से पाठक बनाना सन्दर्भ सेवा का मुख्य लक्ष्य है।

 

सार्वजनिक पुस्तकालय

    सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना सर्वजन हिताय के आधार पर की जाती है, जिसमें अध्ययन करने वाले व्यक्ति की जाति, धर्म व वर्ग के भेद को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति इन ग्रन्थालयो का सदस्य बन सकता है। प्रन्थालय के द्वार सभी व्यक्तियों हेतु खुले रहते हैं, जिनकी आवश्यकताएँ, समस्याएँ आदि भिन्न-भिन्न होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की अध्ययन अध्यापन की आवश्यकताओं की पूर्ति करना ग्रन्थालय का कर्तव्य है। 


सार्वजनिक ग्रन्थालय में निम्न कारणों से सन्दर्भ सेवा की आवश्यकता हो जाता है-

 lआवश्यकतानुसार ग्रन्थालय आदान-प्रदान की व्यवस्था करना ।

lनागरिकों के स्वरूप, मनोरंजन, उनके अवकाश एवं रिक्त स्थान तथा समय के सदुपयोग की व्यवस्था एवं उचित सुझाव प्रदान करने हेतु

lविविध कार्यों में व्यस्त व्यक्तियों की आवश्यकता एवं माँग के अनुरूप वाङ्मय सूची, सार एवं अनुवाद कार्यों का सम्पादन करने हेतु

lपाठक यदि छात्र हो तथा पुस्तकालय में पहली बार आया हो उसे अध्ययन सामग्री से परिचित कराने हेतु, साथ ही उनके उपयोग में प्रशिक्षित करने हेतु ताकि सम्बन्धित व्यक्ति की समस्याओं का समाधान हो सके।

lपुस्तकालयों द्वारा प्रयुक्त विविध प्रविधियों जैसे- वर्गीकरण, सूचीकरण, निधानी व्यवस्थापन मुक्त द्वार प्रणालियों से परिचित कराने हेतु जिससे पाठक ग्रन्थालय का उपयोग स्वयं सफलतापूर्वक कर सके।

lपुस्तकालय के नियमों, पुस्तकालयों की विविध गतिविधियों एवं कार्यविधियों से परिचित कराने हेतु जिससे वे सफलतापूर्वक ग्रन्थालय का उपयोग कर सकें।

lसार्वजनिक पुस्तकालय 'लोक विश्वविद्यालय' है। इनके द्वारा जन-साधारण में बिना किसी भेदभाव के ज्ञान का प्रसार एवं वितरण कर उनके ज्ञान की पिपासा शान्त की जाती है।

lप्रजातन्त्र की सफलता हेतु आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत योग्यता और राष्ट्र के विकास हेतु महापुरुषों के सद् विचारों से शिक्षा, सूचना, ज्ञान और प्रेरणा प्रदान करने के अवसर समान रूप से उपलब्ध होने चाहिए। ग्रन्थालय में यह सुविधा सरलता एवं सुगमता से प्रदान करने का कार्य सन्दर्भ सेवा विभाग द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

 

स्मार्ट फैक्ट्स

lसन्दर्भ सेवा का उद्भव मेलविन ड्यूई के कथन पुस्तकालय से जो चाहो माँगो के आधार पर हुआ। मूल विषय को ध्यान में रखते हुए डॉ. एस आर रंगनायन ने सन्दर्भ सेवा का नाम रेफरेन्स सविस रखा है, जबकि पश्चिमी देशों में इसे रेफरेन्स वर्क भी कहते हैं।

l. सन्दर्भ सेवा के न्यूनतम, मध्यम तथा अधिकतम सिद्धान्त का प्रतिपादन जेम्स आई वायरे के द्वारा किया गया। अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन दो प्रकार की सेवाएँ सन्दर्भ सेवा के अन्तर्गत आती हैं।

lकिसी पुस्तकालय का अधिक से अधिक उपयोग सन्दर्भ सेवा के माध्यम से किया जा सकता है।

 

विशिष्ट ग्रन्थालय

इन ग्रन्थालयों द्वारा जन समुदाय के विशिष्ट विषय पर अभिरुचि प्राप्त गणमान्य व्यक्तियों को ही सेवा प्रदान की जाती है। अतः इन ग्रन्थालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ भी अन्य ग्रन्थालयों से भिन्न होती हैं। सन्दर्भ सेवा इन ग्रन्थालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में सबसे प्रमुख सेवा है।

üयहाँ इस सेवा की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है

üआवश्यकतानुसार अथवा माँग पर सम्बन्धित साहित्य को अपनी भाषा में अनुवादित करने हेतु। सामयिक अभिज्ञता प्रदान करने हेतु। .

üउपयुक्त सूचना का चयन एवं चयनित सूचना को प्रसारित करने हेतु ।

üसामयिक प्रकाशनों को सम्बन्धित पाठकों के मध्य परिसंचारित करने हेतु

üविषय-वस्तु सूची का पुनरुत्पादन करने हेतु

 

 

सन्दर्भ सेवा सिद्धान्त

 

प्रत्येक विषय, विषय क्षेत्र, सीमा तथा सिद्धान्तों पर आधारित होता है. साथ ही अन्य विषयों से उनके सम्बन्धों का निर्धारण किया जाता है। चिन्तक तथा शोधार्थियों द्वारा इन शोधों पर गहन अध्ययन किया जाता है। सन्दर्भ सेवा में इन सिद्धान्तों का अभाव था, क्योंकि सन्दर्भ सेवा का प्रायोगिक पक्ष का उद्भव पहले हुआ तथा बाद में सैद्धान्तिक पक्ष का उदय हुआ। इसी आधार पर परामर्श तथा सुविधाएँ पाठकों को उपलब्ध कराई जाती हैं।

 

सन्दर्भ सेवा क्षेत्रों को निम्न पाँच सूत्रों के माध्यम से समझा जा सकता है

 

प्रथम सूत्र तथा सन्दर्भ सेवा

 

इस सूत्र के अनुसार पुस्तक उपयोग में लाई जा सकती है। अर्थात् पुस्तक में वर्णित विषय का पाठक उपयोग करे। अर्थात् योग्य पाठक तथा उपयुक्त पुस्तक के मध्य सम्पर्क स्थापित करना ही पुस्तकालय कला है।

 

द्वितीय सूत्र व सन्दर्भ सेवा

 

पुस्तकालय में आने वाले प्रत्येक पाठक को पुस्तक मिले। अर्थात् सन्दर्भ कर्मचारियों को सभी प्रकार के साहित्य का शोध अन्वेषण करना चाहिए, ताकि उसका समुचित लाभ पाठक उठा सकें। उन्हें पाठकों को साहित्य व सूचनाओं की खोज में मित्र तथा मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए।

 

तृतीय सूत्र तथा सन्दर्भ सेवा

 

चूँकि पुस्तक एक निर्जीव वस्तु है अतः वह स्वयं अपना पाठक नहीं खोज सकता। अतः इस सूत्र का प्रमुख उद्देश्य है कि प्रत्येक पुस्तक को उसका उचित पाठक मिले। यह सूत्र सन्दर्भ पुस्तकों को पुस्तकालय में उपलब्ध साहित्य की विशेषताओं हेतु जिम्मेदार बनाता है।

 

चतुर्थ सूत्र तथा सन्दर्भ सेवा

 

यह सूत्र पाठकों को 'समय बचाओ' के सम्बन्ध में अवगत कराता है। क्योंकि वर्तमान समय में तेजी से हो रहे प्रकाशनों के कारण पाठकों को अधिक समय लगता है, साथ ही यदि पाठक अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु समस्त प्रकाशित साहित्य का अध्ययन करने लगे तो काफी समय की खपत हो जाएगी. साथ ही शोध संस्थानों में कार्यरत वैज्ञानिकों के पास इतना समय नहीं है कि वह नियमित तौर पर इन प्रकाशनों का अध्ययन करें। इसलिए समय बचाने हेतु सन्दर्भ सहायकों की आवश्यकता महसूस हुई, जो विविध तरीकों से वैज्ञानिकों को सूचनाएँ उपलब्ध कराता है।

 

पंचम् सूत्र तथा सन्दर्भ सेवा

 

पुस्तकालय एक वर्द्धनशील संस्था है। इसका कारण प्रकाशन जगत् में हो रही वृद्धि है। वर्तमान समय में पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तिकाएँ, रिपोर्ट आदि की आवश्यकता पाठकों को होती हैं। शोधकर्ताओं हेतु आवश्यक लेख कई पत्रिकाओं में होते हैं, जिनको खोजना उनहेतु कठिन कार्य है। सन्दर्भ सेवा के द्वारा उसे सरलता से सम्पन्न किया जा सकता है। सन्दर्भ कर्मचारी विविध रूप में प्रकाशित नवीन साहित्य से अवगत कराया जाता है। अतः स्पष्ट है कि पुस्तकालय विज्ञान के पाँच सूत्रों को प्रभावी बनाने हेतु सन्दर्भ सेवा आवश्यक तत्त्व है।

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